जानिये, कंस्ट्रक्शन में EPC/Turnkey कॉन्ट्रैक्ट, लम्प-सम, परसेंटेज या आइटम रेट कॉन्ट्रैक्ट क्या होतें है!
कॉन्ट्रैक्ट क्या होता है?
कॉन्ट्रैक्ट (अनुबंध) किसी व्यक्ति या कंपनी द्वारा कुछ नियमों और शर्तों के तहत कार्य करने के लिए एक क़ानूनी समझौता होता है।
इसके तहत कांट्रेक्टर को निर्धारित समय-सीमा में प्रोजेक्ट को पूरा करके सौंपने की जिम्मेदारी होती है, वहीँ क्लाइंट को समय पर भुगतान करने की आवश्यकता होती है। इसके साथ ही यदि काम समय पर पूरा नहीं होता तो इस स्थिति में जुर्माना का भी प्रावधान होता है।
कंस्ट्रक्शन कॉन्ट्रैक्ट = एग्रीमेंट + B.O.Q, N.I.T, L.O.I, L.O.A, टेंडर ड्राइंग आदि।
यहां आपको सभी प्रकार के Contracts के बारे में जानकारी दी जा रही है।
कॉन्ट्रैक्ट कितने प्रकार के होते हैं? (Construction Contract type in Hindi):
- Item Rate Contract (वस्तु दर अनुबंध)
- Percentage Rate Contract (प्रतिशत दर अनुबंध)
- Lump-sum Contract (एकमुश्त अनुबंध)
- EPC / All in Contract / Turnkey
- Cost Plus Contract (लागत प्लस अनुबंध)
- Calendar Contract Materials Supply (सामग्री आपूर्ति अनुबंध)
- Labour Contract (श्रमिक अनुबंध)
आइटम रेट कॉन्ट्रैक्ट :
इस प्रकार के Contract का आधार प्रत्येक वस्तु की इकाई दर है। यह अनुबंध वहां उपयुक्त होता है जहाँ निष्पादित की जाने वाली वस्तुओं की सटीक मात्रा पहले से ज्ञात नहीं होती है। यहाँ वस्तु (Item) से मतलब है कंक्रीट प्रति क्यूबिक मीटर, स्टील प्रति टन, मिट्टी खुदाई/भराई प्रति क्यूबिक मीटर, शटरिंग प्रति स्क्वायर मी. इत्यादि।
क्लाइंट द्वारा भुगतान निर्माण के माप (Measurement) के आधार पर किया जाता है।
परसेंटेज रेट कॉन्ट्रैक्ट :
इसका उपयोग सार्वजनिक कार्य के विभिन्न दायरों में किया जाता है, जहाँ क्लाइंट चाहता है कि ठेकेदार मात्रा, दर, एस्टीमेट की राशि के साथ वस्तुओं के विवरण के अनुसार काम करे। यह लगभग सभी प्रकार से आइटम रेट कॉन्ट्रैक्ट के समान है, सिवाय इकाई दरों के निविदा की पद्धति को छोड़कर।
निविदा करते समय ठेकेदारों को प्रत्येक वस्तु की दर या अनुमानित लागत नहीं लिखनी होती है, बल्कि एक प्रतिशत अंक जिसके द्वारा BOQ रेट को बढ़ाना या घटाना होता है, वही प्रतिशत अंक सभी मदों पर लागू होता है। यहाँ भी क्लाइंट द्वारा भुगतान निर्माण के माप (Measurement) के आधार पर किया जाता है।
लम्प-सम् कॉन्ट्रैक्ट :
यह फिक्स्ड प्राइस कॉन्ट्रैक्ट है जिसमें क्लाइंट अपना स्पेसिफिकेशन, स्कोप ऑफ़ वर्क देता है और कांट्रेक्टर अपना प्रॉफिट जोड़कर एक एकमुश्त (lump-sum) अमाउंट बतलाता है। इसमें कांट्रेक्टर को क्या क्या काम करना है, उसमें कितना खर्च आयेगा आदि अच्छे से समझ कर एक बजट बनाना पड़ता है।
E.P.C इंजीनियरिंग प्रोक्योरमेंट कंस्ट्रक्शन :
इसका हिंदी में मतलब "इंजीनियरिंग, खरीद और निर्माण" होता है। इस तरह के कॉन्ट्रैक्ट खाड़ी देश और ग्लोबल टेंडर में काफी इस्तेमाल होते है। इसका दूसरा नाम 'Turnkey Basis' प्रोजेक्ट भी होता है। इसमें कांट्रेक्टर को सभी कार्य जैसे- सर्वे वर्क और डिज़ाइन, मैटेरियल्स की खरीद, निर्माण और प्रोजेक्ट पूरा करके सौंपने तक सारी गतिविधियों की जिम्मेदारी दी जाती है।
कॉस्ट प्लस कॉन्ट्रैक्ट :
यह सबसे पुरानीं अनुबंध करने का तरीका है, जिसमें कांट्रेक्टर द्वारा किये गए कार्य, मैटेरियल्स आदि के लागत पे 10 प्रतिशत लाभ या निर्धारित शुल्क देने के प्रावधान होता है। इसमें मैटेरियल्स और अन्य सामानों का बिल क्लाइंट को देना होता है। इससे समय की बहुत बचत होती है।
मैटेरियल्स सप्लाई कॉन्ट्रैक्ट :
आवश्यक सामानों की उपलब्धता और मेंटेनेंस के लिए कैलेंडर कॉन्ट्रैक्ट इस्तेमाल होते है। इसमें मैटेरियल्स की आपूर्ति, मशीन के मेंटेनेंस के लिए तकनीशियन और श्रमिक की सेवा शामिल होती है, और इनका पेमेंट घंटे/दिन के आधार पे होते है।
लेबर कॉन्ट्रैक्ट :
इसमें ठेकेदार क्लाइंट द्वारा आपूर्ति की जाने वाली सामग्रियों को छोड़कर सिर्फ लेबर कार्य के लिए रेट बतलाता है। निर्माण में लगने वाले हरेक प्रकार के मिस्त्री और लेबर उपलब्ध करवाना, कांट्रेक्टर की जिम्मेदारी होती है।
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